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अपने गुरु का दर्द दूर करने के लिए ये शूरवीर शिष्य ले आया था शेरनी का दूध…
समर्थ गुरु रामदास स्वामी अपने शिष्यों में सबसे अधिक प्रेम छत्रपति शिवाजी महाराज से करते थे। शिष्य सोचते थे कि, शिवाजी महाराज राजा होने के कारण ही अधिक प्रिय है। समर्थ स्वामी ने शिष्यों का यह भ्रम दूर करने के बारे में विचार किया।Read more »
बचपन से ही वीर, साहसी वृत्ती रहनेवाले लौहपुरुष सरदार वल्लभभार्इ पटेल !
‘भारत के लौह-पुरुष के नाम से सरदार वल्लभभार्इ पटेल जगप्रसिद्ध हुए । उनका जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नडियाद गांव में हुआ था ।Read more »
संसार को प्रसन्न करना कठिन होना !
लोगों को क्या अच्छा लगता है, इस ओर ध्यान देने की अपेक्षा ईश्वर को क्या अच्छा लगता है, इस ओर ध्यान दीजिए । सर्व संसार को प्रसन्न करना कठिन है, ईश्वर को प्रसन्न करना सरल है ।Read more »
ब्रिटीशपूर्व काल में भारत ज्ञानार्जन के, अर्थात शिक्षा के शिखर पर होना
‘भारत की ब्रिटीशपूर्व काल की शिक्षा उत्कर्ष साधनेवाली थी । इस सन्दर्भ में यूरोपियन यात्रियों एवं शासनकर्ताओं के निःसन्दिग्ध साक्ष्य उपलब्ध हैं । रामस्वरूप ने उनके Education System during Pre-BritishPeriod इस प्रबन्ध में इस विषय में चर्चा की है ।’Read more »
रामराज्य में शिक्षा कैसी थी ?
श्रीराम ने स्वतंत्र शिक्षा देकर घरघर में श्रीराम निर्मित किए थे ! रामराज्य में आर्थिक योजनाओें के साथ ही उच्च कोटिका राष्ट्रीय चरित्र भी निर्मित किया जाता था । उस समय के लोग निर्लाेभी, सत्यवादी, सरल, आस्तिक एवं परिश्रमी थे । आलसी नहीं थे ।Read more »
रामराज्य में शिक्षा कैसे प्रदान की जाती थी ?
रामराज्यमें आर्थिक योजनाके साथ ही उच्च राष्ट्रीय चरित्रका निर्माण किया गया था । तत्कालिन लोक निर्लाेभी, सत्यवादी, अलंपट, आाqस्तक और सक्रिय थे; क्रियाशून्य नहीं थे । जब बेकारभत्ता मिलता है तब मनुष्य क्रियाशून्य बनता है । तत्कालिन लोग स्वतन्त्र थे; कारण शिक्षा स्वतन्त्र थी ।Read more »
वीर अभिमन्यु
कुरुक्षेत्रमें कौरवोंके रथी-महारथियोंसे अपने प्राणोंको दांवपर लगाकर लडते हुए वीरगतिको प्राप्त होनेवाला अभिमन्यु । अभिमन्युने छोटी अवस्थामें ही अतुलनीय पराक्रम किया था । किसी भी कार्यमें सफल होनेके लिए पराक्रम करना ही पडता है ।Read more »
देशद्रोही को पाठ पढानेवाली वीरमति !
‘चौदहवीं शताब्दी में देवगिरी राज्यपर राजा रामदेव राज्य करते थे । मुसलमान सम्राट (बादशाह) अल्लाउद्दीन ने देवगिरीपर आक्रमण किया तथा राजा को आत्मसमर्पण करने हेतु कहा; परन्तु पराक्रमी रामदेव ने उसे धिक्कारा ।Read more »
एकलव्य की गुरुदक्षिणा
एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से पूछा, गुरुदेव, क्या आप मुझे धनुर्विद्या सिखाने की कृपा करेंगे ?’’ गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष समस्या उत्पन्न हो गई; क्योंकि उन्होंने पितामह भीष्म को वचन दिया था कि केवल राजकुमारों को ही विद्या सिखाएंगे ।Read more »
गोरक्षा हेतू सिंह के सामने स्वयं के देह की आहुति देनेवाला हिन्दुओं का पराक्रमी रघुवंशी राजा दिलीप
श्रीराम प्रभु के रघुवंश की यह प्रसिद्ध कथा है । श्रीराम से पहले रघुवंश में एक महान चक्रवर्ती सम्राट दिलीप हुए ! ये गोव्रत का आचरण करते हैं ।Read more »
मोदकै: ताडय
एक बार एक राजा और उसकी रानी दोनों एक जलाशय में स्नान के लिए गए थे । तब जलक्रीडा करते समय राजा अपनी रानीपर जल उडाने लगा ।Read more »
समुद्र मंथन एवं राहू
जनमेजय राजा ने ऋषि वैशंपायन को समुद्र मंथन की कथा सुनाने की विनती की । इसलिए वे कथा सुनाने लगे – राजा, प्राचीनकाल में देव और दैत्यों ने समुद्र मंथन कर अमृत तथा अन्य रत्नों को निकालने का निश्चय किया ।Read more »
कक्षीवान की पहेली
एक बार कक्षीवान ऋषि प्रियमेध ऋषि के पास गए तथा बोले, `प्रियमेध, मेरी एक पहेली सुलझाओ । ऐसी कौन-सी वस्तु है जिसे जलानेपर प्रकाश नहीं उत्पन्न होता ?’Read more »
सत्यकाम जाबाल
प्राचीनकाल में उत्तरी हिन्दुस्थान में जाबाला नाम की एक निर्धन दासी रहती थी । उसका सत्यकाम नाम का एक पुत्र था । जाबाला दिनभर कडा परिश्रम कर अपना तथा अपने प्रिय पुत्र का पेट भरती थी ।Read more »
चाणक्य कौटिल्य
कहते हैं कि आचार्य चाणक्य के पास एक चीनी यात्री आया था । वह जिस समय मिलने आया था, उस समय चाणक्य ( विष्णुगुप्त, कौटिल्य) कुछ लिख रहे थे ।Read more »
संत तुकाराम महाराजजी की विकसित बुद्धि
संत अचूक पहचानते हैं । संत तुकाराम महाराज के कारण लोग उस ढोंगी साधू से कैसे बच सके ? इस कथा से देखेंगे |Read more »
वह देखो सूर्य और सामने जयद्रथ
कुरुक्षेत्र में कौरवों और पाण्डवों के मध्य भीषण युद्ध आरम्भ था । अर्जुन की अनुपस्थिति में कौरवों ने चक्रव्यूह रचा ।Read more »
समर्पण
एक साधु द्वार-द्वार घूमकर भिक्षा मांग रहा था । वृद्ध तथा दुर्बल उस साधु को ठीक से नहीं दिखाई देता था । वह एक मन्दिर के सामने खडा होकर भिक्षा मांगने लगा ।Read more »
गुरुकृपा प्राप्त करने के लिए स्वभावदोष-निर्मूलन का अनिवार्य होना !
‘स्वभावदोष-निर्मूलन’ अष्टांगसाधना का महत्त्वपूर्ण अंग है । इन स्वभाव दोषों के त्याग के बिना साधक के लिए गुरुकृपा तक पहुंचना असंभव है । साधना में स्वभावदोष-निर्मूलन का महत्त्व निम्नलिखित कथा से ध्यान में आता है ।Read more »
गंगास्नान से पावन होने के लिए तीर्थयात्रियों में खरा भाव आवश्यक !
काशी में एक बडे तपस्वी शान्ताश्रम स्वामी का ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज से निम्नांकित सम्भाषण प्रस्तुत कथा से हम देखेंगे |
संत सखू
संत सखू का ईश्वर के प्रति जो अपार भक्तिभाव था और उनसे मिलने की जो तीव्र लगन थी यह देखकर स्वयं ईश्वर ही उससे मिलने आए । उसके मुख में सदैव श्रीविठ्ठल का ही नाम रहता था ।Read more »
सन्त ज्ञानेश्वर आैर चांगदेव महाराज
चांगदेव महाराज सिद्धि के बलपर १४०० वर्ष जीए थे । चांगदेव को उनके सिद्धि का गर्व था । यह गर्व सन्त ज्ञानेश्वर महाराजजी ने कैंसे दूर किया, इस कथा से देखेंगे ।Read more »
व्यवहार में रहकर भी रखना चाहिए अनुसंधान ईश्वर से !
हम व्यवहार में कार्य करते समय इसका अभिनय हमें उत्तम रूप से निभाना चाहिए । परंतु वे भावनाओं को भीतर मन के भीतर ईश्वर से अनुसंधान रखना चाहिए और बाहर प्रपंच का अपना कर्तव्य निभाना चाहिए । प्रस्तुत कथा से यह हम देखेंगे ।Read more »
राजा परीक्षित का शाप
राजा परीक्षितने किया हुआ अपराध क्षमाशील एवं नम्र स्वभाव के शमीक ऋषि ने माफ कर दिया । यह कथा विस्तारित रुप मे देखेंगे ।Read more »
समर्थ रामदासस्वामी की क्षात्रवृत्ति दर्शानेवाली कथा
संत ईश्वर के केवल तारक रूप की नहीं, मारक रूप की भी साधना करते हैं । अत्याचार का दयालु संत भी प्रतिकार करते हैं, मूकदर्शक नहीं होते । यह बोध प्रस्तुत कथा से देखेंगे ।Read more »
दशरथ-कौसल्या विवाह
भगवान श्रीरामचंद्रजी के माता-पिता दशरथ-कौसल्या इनका विवाह किस प्रकार सफल हुआ यह इस कथा मे पढेंगे ।Read more »
राम नहीं, तो मोतियों की माला भी मिट्टी के मोल की !
हनुमानजी प्रभू श्रीरामचंद्र के परमभक्त थे । उन्हे हर वस्तु एवं व्यक्ती में श्रीराम का रूप ढूंढते थे । एेसी ही उनकी एक कथा हम देखेंगे ।Read more »
मृत्यु को लौटानेवाली सिद्धि का मूल्य भी आत्मज्ञान के आगे शून्य होना ।
सिद्धि का उपयोग आत्मज्ञान प्राप्त करने के मार्ग की रुकावट कैसे है यह संत ज्ञानेश्वर एवं चांगदेव इनकी इस कथा से हम देखेंगे ।Read more »
गुरु का कार्य है शिष्य को उसका वास्तविक स्वरूप दिखाना !
गुरु की कृपा होनेपर किसी का भय नहीं रहता । आप कौन हैं और आपका स्वरूप क्या है, यह सर्व आपको गुरु दिखाएंगे । यह बोध हमे प्रस्तुत कथा से मिलेगा ।
श्रद्धावंत भक्त : जटील
भगवंत श्रद्धावानोंको ही दर्शन देते है, यह सत्य बात प्रस्तुत कथा पढने के बाद हमे ध्यानमें आएगी ।Read more »
छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का एक अद्भुत प्रसंग !
शिवाजी महाराजजी की उनके गुरु समर्थ रामदास स्वामी पर दृढ श्रद्धा थी । इसिलिए कठीन प्रसंग मे भगवान उनका रक्षण करते थे । एेसा ही एक प्रसंग प्रस्तुत कथा से देखेंगे ।Read more »
दुष्ट वालिका वध
अपनी प्रजा के लिए अपनी पत्नी का भी त्याग करनेवाले प्रभु श्रीराम ने वाली का वधकर सुग्रीव को उसका राज्य किस प्रकार प्राप्त करवाया था, यह आज हम देखेंगे ।Read more »
विचारों का बिंब-प्रतिबिंब
हम जैसे विचार करेंगे वैसा ही उसका प्रतिविचार कैंसे प्रकट हाेता है , यह प्रस्तुत कथा से हम देखेंगे ।Read more »
अकबर के विरुद्ध धर्मयुद्ध पुकारनेवाले महाराणा प्रताप !
महाराणा प्रताप ने अकबर के साथ तीन बार युद्ध किया । इन तीनों युद्धों में अकबर महाराणा प्रताप को पराजित नहीं कर सका तथा उन्हें पकड भी नहीं सका । उनकी वीरता प्रतीत करनेवाला यह लेख…Read more »
छत्रपति शिवाजी महाराज आज भी चाहिए !
आज देश को युद्ध की सिद्धता करनेवाले, उसके अभ्यास एवं नियोजन का उत्तरदायित्व स्वयंपर लेनेवाले शिवाजी महाराज जैसे वीर राजाेआें की आवश्यकता है ।Read more »
देश और धर्म के लिए प्राण न्यौछावर करनेवाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई !
झांसी की रानी लक्ष्मीबार्इ अपने साहस तथा शौर्य के लिए प्रसिद्ध है । उन्होंने अाखरी दम तक वीरता से शत्रू का सामना किया । प्रस्तुत लेख से उनकी शौर्य गाथा हम देखेंगे ।Read more »
भगवान शिव का वाहन – ‘नंदी’ की उत्पत्ती कथा !
मित्रो, शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक है। आइए इस कथा से हम देखेंगे की नंदी शिवजी का वाहन कैसे बना ।Read more »
जब माता शबरी ने भगवान श्रीराम को खिलाए जूठे बेर . . .
शबरी ने बेरों को चखना आरंभ कर दिया । अच्छे और मीठे बेर वह बिना किसी संकोच के श्रीराम को देने लगी । श्रीराम उसकी सरलता पर मुग्ध थे । उन्होंने बडे प्रेम से जूठे बेर खाए ।Read more »
छ. शिवराय का महत्त्व जाननेवाले और लोकमान्य तिलक की सहायता करनेवाले रवींद्रनाथ टैगोर !
तिलकजी के स्वराष्ट्र प्रेम के विषय में रवींद्रनाथजी के मन में नितांत आदर था । तिलकजी के मन में भी रवींद्रनाथ की विद्वत्ता और कार्य के विषय में कोई संदेह नहीं था ।
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